राखी कह या श्रावणी, पावन यह त्योहार।
कच्चे धागों से बँधा ,भाई बहन का प्यार।।
थाली लेकर शगुन की,बहन सजाये भोर।
रोली से टीका किया, बाँधी रेशम डोर।।
रेशम की ये डोरियाँ , कच्चे धागे चार।
सच्चा रिश्ता प्रीत का, निश्छल पावन प्यार।।
धागे कच्चे हैं मगर, लेकिन पक्की प्रीत।
बहना से भाई कहे, हम बचपन के मीत।।
राखी का त्योहार यह, बाँटे केवल नेह।
बेटी चल ससुराल से , आई बाबुल गेह।।
देते जो कुर्बानियाँ , होते हैं जाँबाज।
बाँधो उनको राखियाँ ,रखते हैं जो लाज।।
एक वचन मैं माँगती, भैया तुमसे आज।
रक्षा कर माँ बाप की, रखना कुल की लाज।।
देती हूँ भैया वचन, मैं भी तुमको आज।
सास ससुर माँ बाप सम, समझ करूँगी नाज।।
हरियाली चहुँ ओर है,धरा किया शृंगार।
रहे मुबारक आपका, राखी का त्यौहार।।
7अगस्त,2017 सोमवार